समुद्र पर श्री रामजी का क्रोध और समुद्र की विनती , श्री राम गुणगान की महिमा दोहा : * बिनय न मानत जलधि जड़ गए तीनि दिन बीति। बोले राम सकोप तब भय बिनु होइ न प्रीति॥ 57 ॥ भावार्थ:- इधर तीन दिन बीत गए , किंतु जड़ समुद्र विनय नहीं मानता। तब श्री रामजी क्रोध सहित बोले- बिना भय के प्रीति नहीं होती!॥ 57 ॥ चौपाई : * लछिमन बान सरासन आनू। सोषौं बारिधि बिसिख कृसानु॥ सठ सन बिनय कुटिल सन प्रीति। सहज कृपन सन सुंदर नीति॥ 1 ॥ भावार्थ:- हे लक्ष्मण! धनुष-बाण लाओ , मैं अग्निबाण से समुद्र को सोख डालूँ। मूर्ख से विनय , कुटिल के साथ प्रीति , स्वाभाविक ही कंजूस से सुंदर नीति (उदारता का उपदेश) , ॥ 1 ॥ * ममता रत सन ग्यान कहानी। अति लोभी सन बिरति बखानी॥ क्रोधिहि सम कामिहि हरिकथा। ऊसर बीज बएँ फल जथा॥ 2 ॥ भावार्थ:- ममता में फँसे हुए मनुष्य से ज्ञान की कथा , अत्यंत लोभी से वैराग्य का वर्णन , क्रोधी से शम (शांति) की बात और कामी से भगवान् की कथा , इनका वैसा ही फल होता है जैसा ऊसर में बीज बोने से होता है॥ 2 ॥ * अस कहि रघुपति चा...
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