अयोध्याकांड की सुंदर चौपाइयाँ
* सत्य कहहिं कबि नारि सुभाऊ। सब बिधि अगहु अगाध दुराऊ॥ निज प्रतिबिंबु बरुकु गहि जाई। जानि न जाइ नारि गति भाई॥ 4 ॥ भावार्थ:- कवि सत्य ही कहते हैं कि स्त्री का स्वभाव सब प्रकार से पकड़ में न आने योग्य , अथाह और भेदभरा होता है। अपनी परछाहीं भले ही पकड़ जाए , पर भाई! स्त्रियों की गति (चाल) नहीं जानी जाती॥ 4 ॥ * रागु रोषु इरिषा मदु मोहू। जनि सपनेहुँ इन्ह के बस होहू॥ सकल प्रकार बिकार बिहाई। मन क्रम बचन करेहु सेवकाई॥ 3 ॥ भावार्थ:- राग , रोष , ईर्षा , मद और मोह- इनके वश स्वप्न में भी मत होना। सब प्रकार के विकारों का त्याग कर मन , वचन और कर्म से श्री सीतारामजी की सेवा करना॥ 3 ॥ * रामचंदु पति सो बैदेही। सोवत महि बिधि बाम न केही॥ सिय रघुबीर कि कानन जोगू। करम प्रधान सत्य कह लोगू॥ 4 ॥ भावार्थ:- और पति श्री रामचन्द्रजी हैं , वही जानकीजी आज जमीन पर सो रही हैं। विधाता किसको प्रतिकूल नहीं होता! सीताजी और श्री रामचन्द्रजी क्या वन के योग्य हैं ? लोग सच कहते हैं कि कर्म (भाग्य) ही प्रधान है॥ 4 ॥ दोहा : * भगत भूमि भूसुर सुरभि सुर हित लागि कृपाल। करत चरित धरि मनुज तनु सुनत मिटहिं...